Tuesday, 17 January 2017

ढूँढते हैं...

आँखोंकि जरूरत ढूँढते हैं 
हम अच्छी सूरत  ढूँढते हैं

करोडो मंदिर बने यहाँ पें 
हम जिन्दा मूरत ढूँढते हैं

हजारों काम मिलते हैं हमें
हम इज्जत-शोहरत ढूँढते हैं

बच्चों जैसी हरकत करते हैं
हम खुदमें  शरारत ढूँढते हैं

तंग आगये दवाईयो सेे
हम जिनेको कुदरत ढूँढते हैं

दीदार हूआ दुनियाका हमें 
हम और कुछ हैरत ढूँढते हैं

© दिपक रा पाटील

No comments: